गिल्ट फंडों से चमकाएं अपने निवेश का सितारा

गिल्ट फंडों का सिता एक बार फिर से बुलंद हो सकता है। रेपो रेट में बढ़ोतरी का सिलसिला हमेशा ही जारी नहीं रहता। जब ब्याज दरों में कटौती शुरू होती है तो अर्थशास्त्रियों के अनुसार, गिल्ट फंड ब्याज दर घटने की परिस्थिति में ज्यादा रिटर्न अर्जित करने में सफल रहते हैं।

क्या हैं गिल्ट फंड

गिल्ट फंड ऐसे म्यूचुअल फंड हैं जो प्रमुख रूप से सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) में निवेश करते हैं। पारंपरिक डेट फंड जहां डेट के विभिन्न विकल्पों में निवेश करते हैं वहीं गिल्ट फंड डेट इंस्ट्रूमेंट की केवल एक श्रेणी जी-सेक को लक्ष्य करते हैं। जी-सेक ऐसी प्रतिभूति है जो भारत सरकार के लिए भारतीय रिजर्व बैंक जारी करता है। सॉवरेन पेपर होने की वजह से जी-सेक में क्रेडिट रिस्क नहीं होता है। आम तौर पर जी-सेक में संस्थागत निवेशक जैसे बड़े निवेशक निवेश करते हैं लेकिन गिल्ट फंड छोटे निवेशकों को जी-सेक में निवेश का लाभ देता है। इनकी अवधि भी भिन्न-भिन्न होती है। निवेशक अपनी सुविधा के अनुसार शॉर्ट टर्म या लांग टर्म के गिल्ट फंडों का चयन कर सकते हैं।

ब्याज दर घटने का क्या होगा लाभ?

जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो सरकारी प्रतिभूतियों की कीमतें घटती हैं और इससे न केवल जी-सेक की कीमतें घटती हैं बल्कि गिल्ट फंडों के रिटर्न पर भी प्रतिकूल प्रभाव होता है। आम तौर पर फंडों की औसत परिपक्वता अवधि जितनी अधिक होगी उसमें उतार-चढ़ाव आने के आसार उतने ही अधिक होंगे।

क्या गिल्ट फंडों में कोई जोखिम नहीं होता?

गिल्ट फंड भी जोखिम-रहित नहीं होते हैं। इनके रिटर्न बैंकों के फिक्स्ड डिपॉजिट या बचत खाते की तरह निश्चित नहीं होते। राजकोषीय घाटे और देश के कर्ज बोझ का असर जी-सेक के प्रदर्शन पर पड़ता है और इस प्रकार गिल्ट फंडों के रिटर्न भी प्रभावित होते हैं। गिल्ट फंडों में सबसे अधिक ब्याज दरों का जोखिम होता है। जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो सरकारी प्रतिभूतियों की कीमतें घटती हैं और इसका असर गिल्ट फंडों के प्रदर्शन पर प्रतिकूल रूप से होता है। एक दूसरा जोखिम यह है कि सरकारी प्रतिभूतियों में तरलता (लिक्विडिटी) कम होती है। गिल्ट फंड सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं जिनका कारोबार सक्रियता से नहीं किया जाता है।

किन निवेशकों के लिए है गिल्ट फंड?

जो निवेशक जोखिम नहीं उठाना चाहते या कम जोखिम उठाना चाहते हैं उनके लिए गिल्ट फंड एक अच्छा विकल्प है। कम जोखिम होते हुए भी गिल्ट फंडों का रिटर्न अच्छा रहा है। मघ्यावधि के निवेशकों के लिए अभी गिल्ट फंड काफी आकर्षक हैं। टॉरस म्यूचुअल फंड के चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफिसर वकार नकवी के अनुसार, अनुमान है कि अप्रैल महीने से ब्याज दरों में गिरावट का दौर शुरू होगा और जी-सेक की कीमतें बढऩी शुरू होंगी। निश्चित तौर पर इनका लाभ उन फंडों को मिलेगा जो जी-सेक में निवेश करते हैं। अगर कोई कम जोखिम उठाने वाला निवेशक एक से डेढ़ साल के लिए निवेश कर एफडी से बेहतर लाभ लेना चाहता है तो उसे गिल्ट फंडों में निवेश करना चाहिए। ब्याज दर कम होने के माहौल में इनका रिटर्न अच्छा होगा। इससे अधिक समय के लिए निवेश की योजना बना रहे निवेशकों को म्यूचुअल फंडों के मंथली इनकम प्लान (एमइआईपी) का चयन करना चाहिए। ब्याज दर कम होने से कंपनियों के ब्याज के भुगतान में कमी आएगी और उनके मुनाफे में इजाफा होगा। एमआईपी के तहत एक छोटे हिस्से का निवेश इक्विटी में भी किया जाता है और न केवल डेट की तेजी बल्कि शेयर बाजार क मजबूती का लाभ भी एमआईपी के निवेशकों को मिलेगा।

गिल्ट फंडों के शुल्क

आम तौर पर जब आप एक साल पूरे होने से पहले गिल्ट फंडों से निकासी करते हैं तो एक प्रतिशत का एक्जिट लोड देना होता है। एक साल के बाद कोई एक्जिट लोड नहीं लगता है।

गिल्ट फंडों के निवेश पर कर का हिसाब

अगर आप एक साल के भीतर यूनिट बेचते हैं तो प्राप्त राशि आपकी आय में जुड़ जाती है और आप जिस कर-वर्ग में आते हैं उस हिसाब से कर लगाया जाता है। इसे शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स भी कहते हैं। एक साल के बाद यूनिटों को बेचने से प्राप्त होने वाले पैसे लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स के अंतर्गत आते हैं। इन पर बिना इंडेक्सेशन के 10 प्रतिशत और इंडेक्सेशन के साथ 20 प्रतिशत के हिसाब से कर लगाया जाता है। गिल्ट फंड इक्विटी में निवेश नहीं करते हैं इसलिए इन पर कोई सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स नहीं लगाया जाता है।