दौर है उच्च ब्याज दर वाले फिक्स्ड इनकम का

यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि इक्विटी का जलवा कायम रहे या उभरते बाजारों में इक्विटी का जलवा बना रहेगा या कमोडिटी भी अच्छे हैं। हालांकि, आज बाजार परिस्थितियां थोड़ी अलग हैं और मैं कुछ तथ्य आपके सामने रखना चाहूंगा जिससे इक्विअी और कमोडिटी में निवेश करने वाले निवेशक आपने निवेश पोर्टफोलियो को संतुलित करने की दिशा में बिना देर किए ठोस कदम उठाएं।

कई देशों के कर्ज का बोझ घट कर एक सामान्य स्तर तक आने में कम से कम 15-20 साल का वक्त लगेगा। यह सब जानते हैं कि घाटे को कम किए जाने वाले कठोर कदमों से ग्रीस, स्पेन आदि देश जैसे सोशियो-पॉलिटिकल संकट उत्पन्न हो सकते हैं।

केंद्रीय बैंकों के पास इन घाटों को कम करने के ज्यादा विकल्प भी उपलब्ध नहीं हैं। कुल कर्ज में हाउसहोल्ड कर्ज की हिस्सेदारी काफी कम है।

कंपनियों और उद्योग के फाइनेंशियल्स सीधे तौर पर अर्थव्यवस्थाओं के कर्ज के स्तर से संबद्ध हैं और उत्पादकता में बढ़ोतरी के बिना किसी भी प्रकार की डी-लिवरेजिंग से जीडीपी घट सकती है।

ज्यादा मुद्रा मुद्रित करने की संभावनाएं भी नहीं हैं। साल 2007-08 का ऋण संकट इसका आभास कराता है।

अब इन वास्तविकताओं को देखते हुए निवेशकों को आदर्श रूप से निम्रलिखित तरीके से आगे कदम बढ़ाने चाहिए।

सभी प्रकार के निवेशकों के बीच उच्च गुणवत्ता वाले फिक्स्ड इनकम ज्यादा पसंद किए जाएंगे। निवेशक करेंसी रिस्क, लिवरेज अनुपात को देखते हुए सबसे पहले सॉवरिन स्तर पर निगाह डालेंगे और फिर कंपनियों के बांड में पैसे लगाएंगे।

शेयर या कमोडिटी में लगातार तेजी बीते दिनों की बात रह जाएगी। दीर्घावधि के लिए इक्विटी और कमोडिटी में निवेश के लिए विवेश से निर्णय लेना होगा।

अब बात करते हैं उन निवेशकों का जो भारतीय बाजारों में निवेश करते हैं। ऐसे निवेशकों को अपनी वित्तीय परिसंपत्तियों के लिए निम्रलिखित कदम उठाने चाहिए।

१. निवेशकों को अल्पावधि या मध्यावधि के लिक्विड फिक्स्ड इनकम फंडों में विकल्प की पहचान करनी चाहिए या जो निवेशक जानकार हैं वह किसी कंपनी के बांड में निवेश कर भी स्थिर रिटर्न पा सकते हैं। सभी निवेशों में तरलता होना जरूरी है क्योंकि निवेशक किसी एक निवेश के साथ बने रहने की चाहत नहीं रख सकते हैं। एनआरआई और विदेशी निवेशकों के लिए अच्छा रहेगा वह करेंसी रिस्क को हेज करते चलें। हेजिंग के बावजूद आर्बिट्राज लाभ ही देगा।

२. ब्याज दरें भारत में धीरे-धीरे घटेंगी ही और इस प्रकार इन निवेशकों के यील्ड में पूंजी की बढ़ोतरी के साथ ही वृद्धि होगी।

३. इक्विटी में अभी सोच-समझ कर निवेश करने की जरूरत है न कि पारंपरिक सिद़्धांतों के आधार पर। सोने की चमक भी समय के साथ घटेगी और किसी भी सट्टे वाली कमोडिटी में काफी सोच-विचार के बाद ही निवेश किया जाना चाहिए।

४. जहां तक निर्यातकों की बात है तो रुपये के अवमूल्यन से उनमें प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। हालांकि, अगर महंगाई का दबाव नहीं घटता है और ब्याज दरों का उच्च स्तर बना रहता है तो प्रतिस्पर्धा जैसी चीज नहीं भी देखने को मिल सकतीहै। इस प्रकार, कारोबार की डी-लिवरेजिंग वक्त की जरूरत बन जाएगी।

५. सट्टा आधारित खरीदारी की कमी के कारण अगर तेल की कीमतें एक निश्चित समय तक घटी रहती हैं तो भारतीय मुद्रा में मजबूती आएगी और इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि भारतीय शेयर बाजारों में तेजी आएगी।

सारांश यह है कि उच्च गुणवत्ता वाले फिक्स्ड इनकम के विकल्पों में निवेश का समय शुरू हो चुका है और जब तक वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों में सुधार नहीं होता तब तक यह आकर्षक बना रहेगा।