एसेट एलोकेशन के जरिये घटाएं जोखिम और पाएं बेहतर रिटर्न

संपति सृजन दीर्घावधि में संपन्न होती है और इसे मौजूदा जीवनशैली से समझौता करके नहीं किया जाना चाहिए। हमें इस तरह निवेश करने की जरूरत होती है कि निवेश से हमे मिलने वाले कुछ रिटर्न की रकम मुद्रास्फीति से ऊंची हो, और यही है संपति सृजन, अन्यथा मुद्रास्फीति संपति को खा जाएगी।

संपति सृजन का मूल नियम है कि विभिन्न संपति प्रवर्गो में निवेश करें, यही एसेट एलोकेशन है। हालांकि विभिन्न संपतियों मेंं जोखिम के स्तर भी अलग-अलग होते हैं और इन जोखिमों को विभिन्न निवेश समयावधियों में निवेश कर पार किया जा सकता है। पर ध्यान रखिए कि जिसमें जोखिम ज्यादा होता है उसमें रिटर्न की संभावना भी उतनी ही ज्यादा होती है। इसका मतलब यह भी नहीं कि जल्दबाजी करें। मसलन अगर किसी युवा को अगले २-३ सालों में घर खरीदना है तो उसके निवेश के बड़े हिस्से को इक्व्टिी में लगाने का मतलब जोखिम होगा।

संपति सृजन के लिए विभिन्न संपति प्रवर्ग मुख्यत: इक्व्टिी, डेट, रियल इस्टेट व गोल्ड हैं। इसमें सबसे कम जोखिम डेट में होता है, इसके बाद गोल्ड, रियल इस्टेट व फिर इक्व्टिी का नंबर आता है।

इसे यूं समझें कि जब कोई इक्व्टिी खरीदता है तो वह असलियत में कारोबार का एक हिस्सा खरीदता है और यही कारण है कि इक्व्टिी में निवेश लंबे समय के लिए किया जाना चाहिए। हालांकि हमारे यहां के निवेशक इक्व्टिी को शॉर्ट टर्म निवेश के रूप में देखते हैं। यही कारण है कि सेकेंडरी इक्व्टिी मार्केट सेगमेंट में कुल कारोबार का तकरीबन ९० फीसदी डेरिवेटिव्ज में होता है।

मेरा यह भी मानना है कि इक्व्टिी बाजार प्रकृति में होलसेल बन गया है लिहाजा खुदरा निवेशक के लिए किसी कंपनी पर शोध करना कठिन होता है। दरअसल किसी कंपनी पर शोध करने के लिए काफी मेहनत की दरकार होती है क्योंकि किसी भी कं पनी की वृद्धि अर्थव्यवस्था की वृद्धि संभावना, जिस सेक्टर में कंपनी कार्यरत है, उसमें वृद्धि की संभावना, कंपनी का अर्निंग मॉडल और खर्चों तथा आय का आकलन आदि पर निर्भर रहता है।

और यहीं पर म्युचुअल फंड खुदरा निवेशकों के सामने वरदान के रूप में सामने आता है। म्युचुअल फंड की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें खुदरा निवेशक को बिल्कुल कम रकम के बदले एक्सपोजर मिल जाता है और उसे सीधे-सीधे कंपनियों में निवेश करना भी नहीं पडता। यहां पर यह भी ध्यान रखें कि म्युचुअल फंड शेयर बाजार से जुडा होता है लिहाजा अगर बाजार यानि कि निफ्टी व सेंसेक्स नकारात्मक हैं तो म्युचुअल फंड भी नकारात्मक होगा।

मेरा मानना है कि भारत में डेट में निवेश करना एकदम आरामदेह है। यह इकलौता ऐसा संपति प्रवर्ग है जिसमें निवेशक सीधे निवेश करता है जबकि अन्य प्रत्येक संपति प्रवर्ग इंटरमीडिएटरी प्रकृति वाली हैं। यह निवेशकों के लिए उपलब्ध निवेश एवेन्यू में सबसे सुरक्षित है हालांकि अन्य संपति प्रवर्गो की तुलना में इसका रिटर्न भी कम है। वैसे डेट कैटेगरी में डिबेंचर्स सरीखे अन्य निवेश एवेन्यू भी होते हैं।

जहां तक डिबेंचर्स की बात है तो ये कॉर्पोरेट द्वारा जारी ब्याज वाहक इंस्ट्रूमेंट्स होते हैं जिनकी परिपक्वता तय होती है। डिबेंंचर्स व बांड के साथ जो रिस्क जुडा होता है वह मुख्यत: डिफॉल्ट का जोखिम होता है। लिहाजा वे अन्य सरलता से उपलब्ध डेट इंस्ट्रूमेंट्स की तुलना में बेहतर रिटर्न की पेशकश करते हैं। इसके अलावा जब ब्याज दरें गिरती हैं तो बांड व डिबेंचर्स की कीमतें बढ़ जाती हैं और ब्याज दरें बढ़ती हैं तो बांड व डिबेंचर्स कीमतें घट़ जाती हैं।

जैसा कि मैं पहले ही कह चुका हूं कि इक्व्टिी बाजार प्रकृति में होलसेल बन गया है लिहाजा बाजार में कोई भी डेट म्युचुअल फंड के जरिए निवेश कर सकता है। यानी कि वाया डेट म्युचुअल फंड निवेशक इक्व्टिी बाजार में भी सहभागी हो सकते हैं। म्युचुअल फंड बाजार में विभिन्न प्रकार के डेट म्युचुअल फंड उपलब्ध हैं जिनका जोखिम स्तर व इन्वेस्टमेंट होराइजन अलग-अलग होता है। इसमें एसे भी उत्पाद हैं जिसमें एक दिन जैसे न्यूनतम दिन के लिए भी निवेश किया जा सकता है। वैसे आमतौर पर निवेशकों के लिए ऐसे डेट म्युचुअल फंडों की संस्तुति की जाती है जिसमें निवेश अवधि एक साल से ज्यादा की हो। तभी अच्छा रिटर्न मिलने के अवसर रहते हैं।

डेट प्रवर्ग में एलोके शन कई कारकों पर निर्भर रहता है पर इसमें सबसे महत्वपूर्ण है निवेशक की रिस्क रिटर्न प्रोफाइल व निवेश होराइजन। निवेशक मुद्रास्फीति को मात देने के लिए डेट म्युचुअल फंड का उपयोग कर सकते हैं। डेट म्युचुअल फंड का उपयोग पोर्टफोलियो की अपेक्षाकृत स्थिरता देने के लिए भी किया जा सकता है।

स्थिरता का कारक ऐसी एक वजह है कि डेट एसेट में एलोकेशन का रेशियो व्यक्ति की उम्र के साथ बढ़ाया जाना चाहिए। दरअसल जैसे-जैसे इंसान की उम्र बढ़ती है, वैसे-वैसे ऊंचे रिटर्न के लिए निवेश में जोखिम लेने की उसकी क्षमता कम होती जाती है। और ठीक उसी समय यानी कि उम्र बढने के साथ ही निवेश पर नियमित आय की जरूरत भी बढ़ जाती है। और इस तरह की समस्त निवेशकीय आवश्यकताओं को डेट म्युचुअल फंड में नियमित निवेश के जरिए पूरा किया जा सकता है।

इसके साथ ही यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि इक्व्टिी, डेट, रियल इस्टेट व गोल्ड सरीखे विभिन्न संपति प्रवर्ग मुख्यत: अलग-अलग तरह का व्यवहार विभिन्न कारोबारी चक्रों में करते हैं। पर यह भी सच्चाई है कि रिसेशनरी या मॉडरेटिंग माहौल में यानी कि जिस प्रकार के माहौल से इन दिनों हम गुजर रहे हैं, डेट एसेट क्लास या गोल्ड एसेट क्लास अन्य संपति प्रवर्गों को पीछे छोड़ सकता है। हम इसे २००४ से २००८ के बीच देख भी चुके हैं कि वृद्धि के माहौल में यानि कि अच्छे समय में इक्व्टिी व रियल इस्टेट ने अन्य संपति प्रवर्गों को पीछे छोड़ दिया था।

और अंत में मैं यह कहना चाहूंगा कि कामयाब निवेश के लिए जरूरी है कि आपके पास दीर्घावधि निवेश योजना हो, उस योजना पर आप अडिग रहें और विभिन्न संपति प्रवर्गो ूमें आप निवेश करें। यह ध्येय आप म्युचुअल फंड में निवेश के जरिए पूरा कर सकते हैं। दरअसल म्युचुअल फंड में निवेश ऐसा ही होता है। हैप्पी इन्वेस्टिंग।